Muktak
प्यार को गलियों में भी घूमे, दर-ए-मोहब्बत पे कई दस्तके भी दी
जब ठुकराएं गए हर जगहा से निधि, पनहा मुझे मेरे दोस्तो ने ही दी
~kavitaNidhi
वो क्या हक जताएंगे मुझेपे, जो मेरी बेरुखी भी सह न सके
क्या करेंगे मोहब्बत हमसे, वो दो लफ्ज प्यार के कह न सके
~kavita Nidhi
जरुरातों के बाजार में जब अपनी बोली लगी, बड़ी ऊँची कीमत मिली
ये नहीं जानते निधि कि प्यार के बाजार से हम नीलम होके निकलें हैं
~kavita Nidhi
कहाँ से लाते हैं वो अपनी बातों में बड़प्पन इतना
मैंने जब भी हाल- ऐ- दिल ये कहा , खुद को छोटा सा महसूस किया ~kavita Nidhi
मेरे हर सवाल का जवाब कुछ इस तरह से दिया उसने
मेरे हर सवाल पे ही एक सवाल खड़ा किया उसने
~kavita Nidhi
मैं क्या शिकायत करू मेरे खुदा से उसकी
ये गली घर ही क्या मजहब भी बदल लिया उसने
मैं क्या शिकायत करू खुदा से बड़े बेवफा होते हैं लोग
रिश्ते, घर मोहल्ला क्या मजहब ही बदल लेते हैं लोग
~kavita Nidhi
न खता तेरी है न मेरी, बस ये इतनी सी कहानी है
तू वो समुंदर ही नहीं जिसके पास मेरे हिस्से का पानी है
~kavita Nidhi
Fakr hai ki Mere hunar ki kuch is tarha kimat lagayi gayi
Mere hunar ki jab kimat lagi to kuch aise lagi
Mujhse jalne wale bhi mere khareedaro me Shamil hain
Vo is tarha mere khilaaf morcha nikaalen hain
Thoda fursat to do, yudh bhi din dhalte khatam ho jaata hai.
Pyaar nafrat ko bhi mita deta hai, kis kitaab me likha hai
Unki nafrat ne to mere pyaar ko mita daala
Mere ashqo se yu mohabaat na kar
Kya sari Zindegi rulane ka iraada hai?
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