मुर्दा- कहानी
वह आज फिर उस गेट के सामने खड़ा था जिस पर बड़े बड़े अक्षरों में नगरपालिका लिखा था इस जगह तो देख कर ही उसे अब झल्लाहट होती थी वह गेट पर लगे नगरपालिका के बोर्ड को देख कर ठिठक गया और अनायास ही उसके मुँह से निकल गया ‘ क्या इसी आज़ादी, इसी व्यवस्था के लिए हम अंग्रेजो से कई दशक लड़ते रहें’... तभी चपरासी को पास से गुजरता देख इसने पुछा ‘ आज बड़े बाबू छुट्टी पर तो नहीं हैं?' ‘अरे अंदर जा कर पूछ नहीं सकते क्या? देखते नहीं में कितने जरूरी काम से जा रहा था. हाँ आएं है ' चपरासी मुँह घुमा कर चला गया. वह भीतर गया और बड्ड बाबू की टेबल पर जा कर बोळा ‘ साहब मैं शामनाथ, वो आपने कहा था किं मुझे.......’ ‘ देखो मैंने पहले भी कहा था क़ि अपने ज़िंदा होने का सबूत लाओ तभी कुछ कारवाही की जा सकती है! एक एप्लीकेशन लिखो और ये फोर्म भी भरो तभी तुम्हे तुम्हारी ज़मीन और मकान तुम्हारे भाइयों से वापस मिल सकतें हैं’ ‘ साहब मैं ये एप्लीकेशन लाया हूँ और ये फोर्म भी भर दिया है। पर ........सबूत नहीं जुटा पाया।’ वो दबी आवाज़ में बोळा। ‘ देखो, बिना सबूत कौन मानेगा की तुम ज़िंदा हो ?’...