चादर
धागो से बुन कर बना कपड़े का टुकड़ा
जब सेज पर बिछती है तो कहलाती है चादर
वो नायक नायिका के प्रेम कि साक्षी
उस मद भरी रात की हमराज बनती है चादर
आपनी सिलवटो से रात का अफसाना यूँहीं
मंद मंद मुस्कुरा बयां करती है चादर
उन स्पर्शो कि छाप खुद पे लिए हुए
एक बार फिर से सेज बनती है चादर
यूं समझो तो बहुत सी यादे है चादर
वरना क्या है!
मिल से निकला हुआ कपड़े का टुकड़ा
धागो से बुन कर बना कपड़े का टुकड़ा
विरहा के दिनों में नायिका की
प्रीत की रात की याद होती है चादर,
वो चादर ही तो है जो खेलता है ,
नायिका के तन पे बन के आँचल
वो चादर ही सजी है दुल्हन पे चुनरी लाल बनके,
वो चादर हि तो है जिसमे माँ
दूध पिलाती है बच्चे को छिपाकर
देखो उस बेबस गरीब लड़की को
जो तन छुपाने को ओढ़े बैठी है चादर
यूँ समझो तो उसकी अस्मत है चादर,
वरना क्या है!
मिल से निकला हुआ कपड़े का टुकड़ा
धागो से बुन कर बना कपड़े का टुकड़ा
वो जब घर की ड्योढी पर पर्दा बन के
अक्सर दरवाजों ए लटकती है चादर
यु घर की हैसियत को राज रख कर
बहार से कितना चमकती है चादर
समझो तो समाज मे घर की इज्जत है चादर
वरना क्या है!
मिल से निकला हुआ कपड़े का टुकड़ा
धागो से बुन कर बना कपड़े का टुकड़ा
वो सर्द जीवन विहीन तन पे फैली हुई सफ़ेद चादर,
जब लाशो पे चढ़ती है तो कफ़न कहलाती है चादर
कफ़न के रूप में समझो तो हर ज़िन्दगी की
एक अंतहीन सच्चाई है ये चादर
वरना क्या है!
मिल से निकला हुआ कपड़े का टुकड़ा
धागो से बुन कर बना कपड़े का टुकड़ा
कभी सेज बानी कभी आँचल बानी
कभी पर्दा तो कभी लाशों पे चढ़ी
यूं अक्सर रूप बदलती है ये चादर
ज़िन्दगी के कितने पहलूओं से
समझो तो जुड़ी हुई है ये चादर,
वरना क्या है!
मिल से निकला हुआ कपड़े का टुकड़ा
धागो से बुन कर बना कपड़े का टुकड़ा
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