काफी हो
मुझमे अब तक थोड़े से तो बाकी हो पर ज़िंदा रहने को उतना भी काफी हो तेरे शहर में बिन आंखे नम किये घूमी मैं मेरी मुस्कराहट में हो तुम, बस काफी हो समझौता ज़िन्दगी का ज़िन्दगी से हो गया है अब ज़िन्दगी में न सही चाँद लम्हात ( meri yaadon )में हो, बस काफी हो जब भी हारती हूँ मैं तुम याद आ जाते हो तब मुझमे उम्मीद बन के ज़िंदा हो तो काफी हो मोती बनने को समुन्दर की भला क्या जरूरत मुझमे स्वाति की एक बूँद से हो तुम, काफी हो तकदीर की ये लकीर बन ही जायेगी अब मैं एक बिंदु और तुम दुसरे, बस काफी हो ~ Kavita Nidhi