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Showing posts from October, 2021

काफी हो

मुझमे अब तक थोड़े से तो बाकी हो  पर ज़िंदा रहने को उतना भी काफी हो  तेरे शहर में बिन आंखे नम किये घूमी मैं  मेरी मुस्कराहट में हो तुम, बस काफी हो  समझौता ज़िन्दगी का ज़िन्दगी से हो गया है अब  ज़िन्दगी में न सही चाँद लम्हात ( meri yaadon )में हो, बस  काफी हो  जब भी हारती हूँ मैं तुम याद आ जाते हो तब  मुझमे उम्मीद बन के  ज़िंदा हो तो काफी हो  मोती बनने को समुन्दर की भला क्या जरूरत  मुझमे स्वाति की एक बूँद से हो तुम, काफी हो  तकदीर की ये लकीर बन ही जायेगी अब  मैं एक बिंदु और तुम दुसरे, बस काफी हो   ~ Kavita Nidhi 

टूटा पत्ता ज़िन्दगी

टूटा पत्ता ज़िन्दगी शाख से गिरना है तय  ख़ाक में मिलना है तय  ज़िन्दगी का ये सफर  इसका गुजरना भी है तय सुन रे पत्ते , सुन रे पत्ते  थोड़ा सा तू तैर ले  खुद के इस वजूद की तू  एक झलक तो लूट ले   इस तरह तू खिल के हंस  फूल संग में खिल उठे  झूम के यूँ चल जरा तू  हवा मचलने सी लगे  देख ये अंदाज़ तेरा   मय बहकने सी लगे  और नभ भी कह उठे  जीना इसी का नाम है  जीना इसी का नाम है  क्षण भर का है जो ये सफर  हर कोई दोहराएगा  कितने  टूटे और गिरे फिर  किसे याद रह जायेगा  एक जो  एहसास तेरे  संग में ही बस जायेगा  कि कौन कितना झूमता सा  ख़ाक में मिल जायेगा  सुन रे पत्ते , सुन रे पत्ते  थोड़ा सा तू तैर ले  खुद के इस वजूद की तू  एक झलक तो लूट ले। ….. ~Kavita Nidhi 

मेरे पापा

खुद गर्मी सह लेते पापा  धूप में छाया बनते पापा  मैं जब भी थक कर हार गई  मेरी हिम्मत बनते पापा  मैं जब जब तन्हा घबराई  मेरे साथ खड़े थे पापा  मुश्किल के बरसे बदल जब  मेरी छतरी मेरे पापा  रास्ता जब है खो सा जाता ‘अब क्या होगा बोलो पापा’ कंधे पर सर रखती थी तो  ‘मैं हूँ ना’ कह देते पापा  पापा के जैसे ही हंसना  पापा सी ही बाते करना  हरदम ये इच्छा थी मेरी  तुम सा ही बन जाऊं पापा  दिल ही दिल मुस्काती थी मैं  जब सब xerox बतलाते थे  कितना अच्छा हो जायेगा  गर दिल तुमसा पा जाऊं पापा   आज जरा कमजोर दिखें हैं  कंधे भी कुछ और झुकें हैं  बचपन में जो लगते थे वो  super hero मेरे पापा  पर अब भी  जब कह देते हैं  सर पे हाथ मेरे रख कर वो  लगता है अब नहीं अकेली  मेरे साथ हैं मेरे पापा  खुद गर्मी सह लेते पापा  धुप में छाया बनते पापा.........