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Showing posts from October, 2020

जमघटों को देख लो

हैं सुलगती दिल में इनके नफरतों को देख लो  जल के हो गयी धुआँ इन सिगरटों को देख लो  हैं भरोसे को मेरे ये जोक सा सब चूसते  रंग बदलते हर घड़ी इन गिरगिटों को देख लो  हर   ख़ुशी क्या  जीत लोगे  ज़िन्दगी   में   दौड़   के   उन   अमीर   बिस्तरों   की   करवटों   को   देख   लो   है   गुमान   गर   तुम्हे   की   हो   यहाँ   तुम   चिर   यथा   एक   बार   जाके   तुम   उन   मरघटों   को   देख   लो     महफ़िलों   की   जान   खुद   को   जो   समझते   हो   यहाँ   थे     खिलखिलाते  जो, सूने  पनघटों   को   देख   लो चेहरे   की   उन   रौनको   पे   मर     मिटें   जो   मेहरबान   आज   उनही   सूरतों   की   सिलवटों   को   देख   लो   बंधनो ...

नीव- घर की

नीव- घर की  कुछ भी मैं  तुमसे छुपाती नहीं हूँ  मगर फिर भी सब कुछ बताती नहीं हूँ  तोड़ डाले जो तेरी उमीदों की डोरी  भले सच हो कितना, जताती नहीं हूँ  न जाना तू मेरे अल्हड़ से लहज़े पे  मैं चिंता मेरी बस दिखती नहीं हूँ  दिखती हूँ मैं बेपरवाहा सी लेकिन  ऐसा नहीं तुझको चाहती नहीं हूँ  थोड़ा नमक जीने को है जरूरी  इसे अश्क में यूँ लूटती नहीं हूँ  तन्हाई के गीत होते हैं अपने  तभी संग तेरे गुनगुनाती नहीं हूँ  डरती हूँ  दूर न हो जाऊं तुझसे  तभी इतना भी पास आती नहीं हूँ  जीना न आये इस दिल को किसी दिन  तुमसे ये दिल यूँ लगाती नहीं हूँ  चाहती हूँ सर रख के कंधे पे रोना  मगर मैं कभी रो पाती नहीं हूँ  अडिग हो तेरे होसलो की ईमारत  मैं कमजोर खुद को बनती नहीं हूँ