चादर

मिल से निकला हुआ कपडे का टुकड़ा धागो से बुन कर बना कपड़े का टुकड़ा जब सेज पर बिछती है तो कहलाती है चादर वो नायक नायिका के प्रेम कि साक्षी उस मद भरी रात की हमराज बनती है चादर आपनी सिलवटो से रात का अफसाना यूँहीं मंद मंद मुस्कुरा बयां करती है चादर उन स्पर्शो कि छाप खुद पे लिए हुए एक बार फिर से सेज बनती है चादर यूं समझो तो बहुत सी यादे है चादर वरना क्या है! मिल से निकला हुआ कपड़े का टुकड़ा धागो से बुन कर बना कपड़े का टुकड़ा विरहा के दिनों में नायिका की प्रीत की रात की याद होती है चादर, वो चादर ही तो है जो खेलता है , नायिका के तन पे बन के आँचल वो चादर ही सजी है दुल्हन पे चुनरी लाल बनके, वो चादर हि तो है जिसमे माँ दूध पिलाती है बच्चे को छिपाकर देखो उस बेबस गरीब लड़की को जो...