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Showing posts from July, 2021

ज़माने से जमाने में

ज़माने से जमाने में,  ज़माने  हम गवां बैठे सभी कुछ जान जाने में,  खुद ही को हम भूला बैठे ना अब वो रात आती है, ना वो सुबह ही होती है नया सूरज उगाने में,  क्यो ये नींद उड़ा बैठे ये अलीशान घर भी तो,  कहां मेरी जरूरत था   ये दुनिया को दिखाने में,  ये क्या क्या हम जमा बैठे वो गाँव की थी पगडंडी,  जहां थे झूम के चलते ये कैसी दौड़ में भागे,  ये किस रास्ते निकल बैठे जीत हर हाल में हासिल,  इसी एक शर्त पे जीते मगर इस सिलसिले में, हम ठहरना ही भूला बैठे बहुत कुछ हम जमा करके,  बहुत कुछ हम लुटा बैठे ज़माने से जमाने में,  ज़माने  हम गवां बैठे

भेद भाव

ये भेद भाव तेरा देख, कुछ तो गुल खिलायेगा  सर झुका ये बेटियों का, उसे हौसला दिलाएगा  न सिखाया लाडले को तूने गर झुकना अभी  एक दिन तू  देखना ये सर तेरा झुकायेगा।।